हरियाणा की राजनीति में ट्रेजडी किंग के नाम से विख्यात चौधरी बीरेंद्र सिंह भाजपा को छोड़कर फिर से अपने पुराने घर कांग्रेस में लौट आए हैं। इनकी गिनती गिने-चुने नेताओं में होती है, जो बिना किसी लाग-लपेट के सीधा और स्पष्ट बोलने के लिए जाने जाते हैं। करीब साढ़े 9 साल भाजपा में बिताने वाले चौधरी बीरेंद्र सिंह से वरिष्ठ पत्रकार अजय दीप लाठर ने देश-प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक हालात पर विस्तार से चर्चा की। इस दौरान उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज में तमाम सवालों के जवाब दिए। पेश है लंबी चली बातचीत के प्रमुख अंश:
52 साल का राजनीतिक अनुभव। आपने सरकारें बनती और बिगड़ती देखी हैं। अब देश की राजनीति को किस तरह देख रहे हैं?
राजनीति के चरित्र में समय के साथ कुछ न कुछ बदलाव आते हैं। कुछ आर्थिक तौर से समृद्धि भी राजनीतिक सोच पर असर डालती है। पार्टी की विचारधारा में भी परिवर्तन आते हैं। बिना नजर आए भी आम मतदाता बहुत तीखी नजरों से इन गतिविधियों को देखता है। भारत का वोटर जब राजनीतिक निर्णय लेता है तो वह दूरगामी सोचते हुए निर्णय लेता है।
आपको क्या लगता है, इस बार मतदाता किसकी ओर निर्णय लेगा?
चुनाव के परिणाम आने पर ही मतदाता का निर्णय पता चलेगा। लेकिन, मेरा अनुभव कहता है कि वह मंथन कर रहा है। वह भ्रामक, भ्रामकता से कुछ न कुछ बाहर निकल कर आ रहा है। उसका निर्णय मजबूत प्रजातंत्र के लिए अच्छी सोच हो सकता है। उसके दिमाग में जो मंथन चल रहा है, उसमें उसे कुछ चीजें साफ तौर पर नजर आने लगी हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता, व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की आजादी, उसके मन में बड़े सवाल हैं। क्या आगे यही सरकार रहे या दूसरी बने, वह इस बारे में मंथन कर रहा है। देश की अखंडता भी उसके मंथन का बड़ा विषय है।
देश में 2026 में नए सिरे से परिसीमन होना है, आपके नजरिए से क्या आधार होना चाहिए?
देखना होगा, राष्ट्रीय दल व राष्ट्रीय नेताओं का क्या विचार बनता है। क्या जनगणना के आधार पर विधानसभा व लोकसभा क्षेत्रों को बढ़ाएंगे। लेकिन, जागरूक समाज के मन में शंका जगी है कि परिसीमन जनगणना के आधार पर हुआ तो देश को खतरा हो जाएगा। 2007 में जब परिसीमन होने लगा तो यह बात सामने आई कि कुछ राज्यों में 20 से 25 प्रतिशत जनसंख्या बढ़ गई, जबकि दक्षिण के राज्यों में जनगणना में मामूली बढ़ोतरी के हिसाब से सीटों का नुकसान हो रहा था। तब निर्णय लिया गया कि परिसीमन तो करेंगे, लेकिन लोकसभा में सीटों की संख्या नहीं बढ़ाएंगे। उससे स्थिति बच गई। देश को इकट्ठा रखना, अखंडता बनाए रखना अब फिर बड़ा सवाल है।
प्रदेश में 10-12 साल से कांग्रेस का संगठन नहीं बनना दुर्भाग्यपूर्ण
हरियाणा कांग्रेस के नेताओं को एकजुट करने में निष्पक्ष भूमिका निभाऊंगा
चर्चा है कि भाजपाई संविधान बदलने को 400 पार का नारा दे रहे हैं, इसे क्या मानते हैं?भाजपा के उम्मीदवार कह रहे हैं कि 400 का आंकड़ा पार करके हम संविधान को बदलेंगे, इसको लेकर आम मतदाता को जागरूक होने की जरूरत है। वोट के अधिकार के साथ ही पार्लियामेंट डेमोक्रेसी को मजबूत करना जरूरी है। जन गण मन का बड़ा भारी महत्व है। यह देश की जनता का अधिनायकवाद है। इसकी दिशा बदलने का कोई प्रयास कर रहा है तो भारत की अखंडता को, भारत के संविधान को, ख्यालों की अभिव्यक्ति के बारे में मतदाता जरूर सोचेगा।
गांधी परिवार से आपकी नजदीकी का अक्सर जिक्र होता है, अब खुद को किस भूमिका में देखना चाहते हैं?
मेरा मानना है कि पूरे देश में आज भी कोई पार्टी है तो कांग्रेस है। राहुल गांधी आसाम जाएं तो भीड़, केरल जाए तो वहां भी ऐसा ही, गुजरात जाए तो वहां भी भीड़, यह उदाहरण है। पहले भी आम जनसाधारण की सोच थी कि कांग्रेस बचेगी तो देश बचेगा। गांधी परिवार की भूमिका को कांग्रेस व देश को बचाए रखने में कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में साधारण तौर पर बड़ा अभियान चलाना पड़ेगा, ताकि हर व्यक्ति को संपर्क में ला सकें। इसमें अपना योगदान दूंगा।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल का आपने विभिन्न मौकों पर बखूबी साथ दिया। उनके साढ़े 9 साल के कार्यकाल को कैसे देखते हैं?
मनोहर लाल जी ने अपने कामों में दक्षता दिखाई, चूंकि वे आरएसएस से आए थे, लेकिन खुद को राजनेता के तौर पर कामयाब नहीं कर पाए। आपने देखा 75 पार की बात करने वाले, 10 की 10 सीटों की अब बात करना, यह गैर राजनीतिक होने का प्रमाण है, जबकि हरियाणा का वोटर पूरी तरह राजनीतिक है। मेरा मानना है कि मन अच्छा हो, काम अच्छा करने की इच्छा हो, लेकिन वह कार्य जनता में स्वीकार्य न हो तो फिर उसके अच्छे की कोई बात नहीं होती। आईटी में उन्होंने अच्छे कदम उठाए, लेकिन जनता में फैमली आईडी, फसल ब्यौरा, फसल बीमा आदि स्वीकार्य नहीं हुए। क्योंकि, उन्होंने इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं रखा। सिर्फ मनोहर लाल नहीं, भारत सरकार किसानों के लिए बिल लाई तो उन्होंने भी किसी से बात नहीं की थी। इसका परिणाम बाद में सारे देश ने देखा।
आपने कांग्रेस छोड़ी तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर आरोप लगाए। ज्वानिंग के समय कांग्रेस ने हुड्डा से आपका स्वागत कराया। अब हरियाणा कांग्रेस में नेता कौन, आप या हुड्डा?
नेता तो एक होता है, और वो होता है राष्ट्रीय स्तर पर। एक समय में इंदिरा गांधी थी, फिर राजीव गांधी थे, फिर सोनिया गांधी। जब कांग्रेस को सोनिया गांधी जी की जरूरत थी तो उन्हें बार-बार कहा गया कि आप पार्टी को संभालो। जब वे अध्यक्ष बनीं तो 4 राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही 14 राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनीं। स्टेट लीडरशिप पर तो आप जितनों को प्राथमिकता देंगे, उतना अच्छा। कार्यकर्ता के मन में यह बात आए कि उनके नेता का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी का किसी विशेष जाति में प्रभाव है, किसी का किसी एक क्षेत्र में प्रभाव है, किसी का समाज के किसी विशेष अंग पर प्रभाव है, उनको महत्वपूर्ण बना कर रखने में पार्टी हाईकमान का बड़ा हाथ होता है। मैं हूं या कौन है? मैं तो नया-नया आया हूं। हुड्डा आज नेता प्रतिपक्ष हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह भी बात है कि किन कारणों से 10-12 साल से संगठन नहीं बन रहा। मेरा प्रयास रहेगा कि सब मिलकर इस बात की सहमति जरूर करें कि संगठन जल्द बने। संगठन से ही पार्टी को मजबूत कर सकते हैं।
हरियाणा कांग्रेस को आज दो गुटों में देखा जाता है, एक हुड्डा कांग्रेस तो दूसरा एसआरके। चौधरी बीरेंद्र सिंह कहां होंगे?
यह मीडिया की सोच है। इन चीजों का कोई मतलब नहीं है। लेकिन, मैं प्रयास करूंगा कि ये आपकी दो लाइन (हंसते हुए) ठीक करके एक लाइन कर सकें, तो प्रेस को भी अहसास होगा कि निष्पक्ष रूप से मैंने अपनी भूमिका निभाई। संगठन बनेगा तो कांग्रेस एक नजर आएगी। अब संगठन नहीं है तो ही आदमी (फिर से हंसते हुए) कोई किसी का होता है, कोई किसी का।
हरियाणा की राजनीति को किस नजरिए से देखते हैं, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कहां खड़ा देख रहे हैं?
लोकसभा की 10 सीटों में से कौन कितनी सीट लेता है, इसका विधानसभा के चुनाव पर असर पड़ेगा। 10 जीतने का दावा करने वाले 3 भी न जीत पाए तो उनकी कमजोरी सामने आ जाएगी। जुड़ने वाले लोग पीछे हट जाएंगे। हरियाणा का तो ट्रेंड है, लोगों की जो सोच है, उसको पढ़ते हुए (ऐसा नहीं कि आज मैं कांग्रेस में हूं) मुझे लगता है कि कांग्रेस की तरफ लोगों का रूझान है और लोग अपनी सोच को बदल रहे हैं। वो किस स्पीड से बदलते हैं, अगर यह स्पीड अप हो गई तो बीजेपी को लेने के देने पड़ जाएंगे। स्पीड स्लो हो गई तो फिर स्पीड अप वाले परिणाम नहीं हो सकते। लेकिन, बदल रहे हैं, बदल इस कद्र रहे हैं कि मुझे लगता है कि परिणाम आश्चर्यजनक भी हो सकते हैं।
भाजपा में गए तो गांधी परिवार के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला, क्या अब मोदी-शाह या फिर अन्य भाजपाइयों के खिलाफ भी चुप रहेंगे?*)
मनोहर लाल के बारे में मैंने आपको जवाब दिया। पार्टी की विचारधारा को लेकर आपको कुछ ठीक नहीं लगता तो फिर आपको खुलकर बोलना चाहिए। क्योंकि, राजनीतिक होने की वजह से लोगों को जागृत करना भी आपका काम है। लेकिन, व्यक्ति विशेष के बारे में गलत बात करना, छोटी बात करना लोगों को भी पसंद नहीं आता। कई लोग अपने से ऊपर वालों को खुश करने के लिए इस तरह की बात करते हैं। दस साल मैं भाजपा में रहा, लेकिन 42 साल की कांग्रेस की विचारधारा से बाहर नहीं निकल सका, निकलने की कोशिश भी की, तो भाजपा की विचारधारा से जुड़ने की सहमति नहीं थी मेरी। इसलिए व्यक्तियों की निंदा करना या उनके चरित्र पर कुछ बात करना ठीक नहीं है।
-- अजय दीप लाठर, लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।